देश में इस वक्त आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक हर स्तर पर उथल-पुथल देखी जा रही है। भारत जोड़ो यात्रा खत्म हो चुकी है, लेकिन उसके असर के बारे में अब विमर्श चल रहा है। रामचरित मानस पर विवाद चल ही रहा है।
पठान फिल्म के बहिष्कार की सारी कोशिशों के बावजूद फिल्म करोड़ों का व्यवसाय कर चुकी है और अब अनुराग ठाकुर नसीहत दे रहे हैं कि बहिष्कार जैसे काम नहीं करने चाहिए।
गांधी-गोडसे एक युद्ध फिल्म भी हाल ही में पर्दे आई, जिसने यह प्रश्न पैदा कर दिया है कि आखिर गांधी और गोडसे को समकक्ष खड़ा करने का क्या औचित्य था, और इस फिल्म का अंतत: मकसद क्या है।
सवाल गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डाक्यूमेंट्री को लेकर भी सरकार ने उठाए और इसे प्रतिबंधित कर दिया था। मगर अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। गुलामी के सारे प्रतीकों को खत्म करने की सनक में मुगल गार्डन का नाम अमृत उद्यान हो गया। और इन सबसे परे एक अलग तूफान आर्थिक मोर्चे पर आ चुका है।
हिंडनबर्ग रिसर्च फर्म के आरोपों के बाद अडाणी समूह के शेयरों में लगातार गिरावट जारी है। अब गौतम अडाणी दुनिया के शीर्ष 10 अमीर लोगों की सूची से भी बाहर हो गए हैं। खुद पर लगे आरोपों को अडाणी समूह ने गलत बताया था और इसे भारत पर सुनियोजित हमला बताया था।
लेकिन हिंडनबर्ग का कहना है कि तिरंगे की आड़ में अडाणी समूह देश को व्यवस्थित तरीके से लूट रहा है। इस तरह की कई हलचलों के बीच 31 जनवरी से संसद का बजट सत्र शुरु हो गया है।
अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले इस बार के बजट को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि सरकार बजट में कई ऐसी घोषणाएं कर सकती है, जिस पर बाद में चुनावी लाभ ले सके। भाजपा के पिछले रिकार्ड को देखते हुए यह अनुमान गलत नहीं लगता है। संसदीय परंपरा के मुताबिक सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से हुई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संसद में यह पहला अभिभाषण था।
सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इसे नारी सम्मान का अवसर बताते हुए जंगलों में जीवन बसर करने वाले हमारे देश के महान आदिवासियों के सम्मान का समय भी बताया। नारी और आदिवासी सम्मान की यह भावना तो सही है, लेकिन सरकार को पता होना चाहिए कि इसके लिए केवल भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल काफी नहीं होता, जमीन पर काम भी करने पड़ते हैं। अभी तो इन दोनों वर्गों के साथ हाशिए के सभी समुदायों को अपनी गरिमा और इज्जत के लिए जूझना पड़ता है।
बहरहाल, राष्ट्रपति पद पर एक आदिवासी महिला को देखकर अच्छा तो लगता ही है, लेकिन कितना अच्छा होता, अगर श्रीमती मुर्मू के अभिभाषण में इस बदलाव की झलक दिखती।
चलन यही है कि राष्ट्रपति का भाषण सरकार की नीतियों और फैसलों के पक्ष में होता है। हर चलन को बदलने वाली मोदी सरकार इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकी। राष्ट्रपति मुर्मू ने जो कुछ कहा, उसे सुनकर ऐसा लगा मानो चुनावों में भाजपा और मोदी सरकार का प्रचार चल रहा हो।
अपने अभिभाषण में मोदी सरकार को निर्णायक सरकार बताते हुए राष्ट्रपति ने जनता का लगातार दो बार इस सरकार को चुनने के लिए धन्यवाद किया। क्या इस तरह का धन्यवाद देना उचित है, क्योंकि लोकतंत्र में जनता को यह अधिकार होता है कि वह अपने मत से किसी राजनैतिक दल को अगर जिता सकती है, तो हरा भी सकती है। इस तरह का धन्यवाद क्या जनता पर अघोषित दबाव नहीं है कि वह फिर से ऐसा ही कोई फैसला करे।
अभिभाषण में राष्ट्रपति ने सर्जिकल स्ट्राइक, आर्टिकल 370 को रद्द करने और तीन तलाक जैसे फैसलों को लेकर सरकार की तारीफ की। जबकि ये सारे काम उनके राष्ट्रपतित्व काल में नहीं हुए हैं, पहले हुए हैं और उनका पर्याप्त चुनावी फायदा भाजपा ले चुकी है। इस सरकार के मौजूदा चार सालों में कई ज्वलंत मुद्दे हैं, जिन पर संसद में चर्चा होनी चाहिए, लेकिन विपक्ष की कोशिशों के बावजूद सरकार चर्चा के लिए तैयार नहीं होती है।
महंगाई, बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़ों के अलावा, चीन का अतिक्रमण, संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता पर उठते सवाल, राज्यों के बीच सीमा विवाद, न्यायपालिका और सरकार के बीच का टकराव, अल्पसंख्यकों, कामगारों, महिलाओं, बच्चों के लिए सुरक्षित माहौल, विकास के नाम पर पर्यावरण के लिए बढ़ रहे खतरे, अभिव्यक्ति की आजादी का हनन ऐसे कई गंभीर मुद्दों पर सार्थक चर्चा की जरूरत है। लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण में इनमें से किसी का जिक्र नहीं हुआ। अगर हुआ होता, तो फिर संसद में विमर्श का माहौल प्रशस्त होता।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि मेरी सरकार का स्पष्ट मत है कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र का और सामाजिक न्याय का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए बीते वर्षों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध निरंतर लड़ाई चल रही है। हमने सुनिश्चित किया है कि व्यवस्था में ईमानदार का सम्मान होगा। राष्ट्रपति को यह भी बताना चाहिए था कि ईमानदार के सम्मान के साथ बेईमान को सजा दिलवाने के लिए उनकी सरकार कितनी प्रतिबद्ध है। जिस निरंतर लड़ाई की बात उन्होंने की है, वो अंजाम पर कब पहुंचेगी। देश के सबसे अमीर औद्योगिक घराने पर गंभीर आरोप लगे हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का दावा करने वाली सरकार ने अब तक उस पर कोई टिप्पणी नहीं की, किसी तरह की जांच के आदेश नहीं दिए। क्या इस तरह से बेईमानी पर अंकुश लगाया जाएगा।
बजट सत्र से पहले मोदीजी ने सभी दलों से सहयोग की अपील तो की है, लेकिन ये तय है कि बजट पेश होने के बाद अडाणी समूह और हिंडनबर्ग विवाद, बीबीसी डाक्यूमेंट्री, चीन की घुसपैठ इन सब पर विपक्ष चर्चा की मांग करेगा। तब समझ आ जाएगा कि राष्ट्रपति जिसे निर्णायक सरकार बता रही हैं, वह किस मजबूती से इन चर्चाओं में हिस्सा लेती है। फिलहाल राष्ट्रपति के अभिभाषण से निराशा ही हुई है। अमृतकाल जैसा कोई अहसास इस भाषण से नहीं हो पाया।